Special Report: महामारी के दौर में नर्सों की न करे अनदेखी सरकार
नरजिस हुसैन
न सिर्फ दिल्ली बल्कि एशिया के जाने-माने एम्स अस्पताल की नर्सों ने 6 जून को एक दिन के लिए हड़ताल पर जाने की ठानी। ऐसा उन्होने कुछ शौक में नही किया इसके पीछे वजह थी कि उन्हें कोरोना महामारी के चलते पिछले कुछ महीनो से लगातार 8-10 घंटे बिना एसी के काम कराया जा रहा था। इसके अलावा यह भी कि उन्हें पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) प्रशासन नही दे पा रहा है। उनका कहना था कि जब तक इन दोनों मुद्दों पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया जाता तब तक वह काम पर नहीं लौटेंगी। जाहिर है ऐसे में खुद की जान को जोखिम में डालकर नर्से भी मरीज को बचा नहीं पाएगी। इस कदम ने कोरोना के दौर में डॉक्टरों के अलावा नर्सों और सहायक स्टाफ की अनदेखी और लाचारी पर भी रोशनी डाली।
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इससे बदतर हाल दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में काम कर रही नर्सो का है जो मार्च से लगातार 10-12 घंटे की ड्यूटी कर रही है वह भी एक ही पीपीई में और बिना कोई अतिरिक्त सुविधा के। सैलरी कट, पीपीई की कमी, एन-95 और दस्तानों की गैर-मौजूदगी और लंबे घंटों में काम करने से मजबूर होकर कई नर्सों को दिल्ली भी छोड़नी पड़ी। इसी अनदेखी के चलते मार्च में ही ऐम्स में भी 3500 मेडिकल स्टाफ और उनके 150 परिजनों को कोरोना का शिकार होना पड़ा था। हालांकि, इसमें 60 फीसद ठीक भी हो गए थे लेकिन, अस्पताल का कहना था कि अगर हेल्थ वर्कर खुद ही इंफेक्ट होता रहा तो वे किस तरह से मरीजों को ठीक कर पाएगा।
जिस तेजी से दिल्ली में कोरोना बढ़ रहा है और मानसून के आने से बाकी बीमारियों जैसे डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया का खतरा बढ़ता जा रहा है वैसे ही दिल्ली और देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे की पोल खुलने का भी डर बढ़ता जा रहा है। इस वक्त दिल्ली कोरोना वायरस का दूसरा बड़ा हॉटस्पॉट बन गई है। 24 जून को सरकारी आंकडों के मुताबिक में दिल्ली में कोरोना के कुल 66,602 केस दर्ज किए गए हैं। ऐसे में दिल्ली के कितने ही प्राइवेट नर्सिंग होम की नर्सों ने या तो नौकरी से इस्तीफा दे दिया या फिर मरीजों के परिजनों ने उनकी शिकायत पुलिस में करनी शुरू कर दी थी। नर्सों पर आरोप था कि वे मरीजो की ठीक से देखभाल नहीं कर रही है और उन्हें अकेला छोड़ देती है। हालांकि, इन सबके बीच किसी ने नर्सों की खुद की देखभाल और सुरक्षा तय करना जरूरी नहीं समझा।
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इसी बीच दिल्ली सरकार के एक डॉक्टर ने आप बीती जाहिर करते हुए अस्पतालों की लचर व्यवस्था का एक वीडियो बनाया। इस पर दिल्ली सरकार ने उसे सस्पेंड कर दिया। यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो 17 जून को कोर्ट ने राज्य सरकार को डॉक्टरों का उत्पीड़न बंद करने को कहा और दिल्ली सरकार को राज्य के सभी स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कहा। यह नहीं इंडियन नर्सिंग काउंसिल की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने भी राज्य के सभी प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग हो में नर्सों को सुरक्षा सूट नहीं दिए जाने पर केन्द्र और राज्य सरकार दोनों से ही जबाव तलब किया है। युनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन ने बी मुख्यमंत्री को इन हालातों के बारे में लिखित जानकारी दी थी जिसका अभी तक कोई जवाब इन्हें नहीं मिला।
इन नर्सों का दुख सिर्फ इतना ही नहीं था इनमें से कापी का मानना था कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों की किस तरह से देखभाल की जाए इसकी कोई ट्रेनिंग सरकारी या प्राइवेट अस्पतालों ने नर्सों को दी ही नहीं। उसके बाद भी जो काम ये कर रही हैं उसमें इनको सैलरी भी कटकर मिल रही है। प्राइवेट अस्पतालों की यह मनमानी से यह साफ जाहिर है कि महामारी के वक्त भी दिल्ली सरकार का न तो इनपर कोई कंट्रोल है और न ही राज्य सराकार आपसी बातचीत के जरिए इनके साथ मिलकर कोई बीच का रास्ता निकाल पाई। दिल्ली सरकार के सभी प्राइवेट अस्पतालों में 20 फीसदी बेड कोरोना मरीजो के लिए सुरक्षित रखने के फैसले के बाद मध्यम और छोटे स्तर के प्राइवेट और नर्सिंग होम की नर्सों ने नौकरी छोड़ना शुरू कर दिया था।
कोरोना के दौर में ही केरल से करीब 55 मलयाली नर्सों ने देश छोड़कर बाहर नर्सिंग करना ही बेहतर समझा। यह सभी नर्सें ऑयरलैंड में नौकरी पर चली गई। सरकार और प्रशासन को यह समझना जरूरी था कि इनमें से कई नर्सें अपने परिवार के साथ रहते हैं जो सुबह से शाम अस्पताल में बिना सुरक्षा के नौकरी कर जब वापस घर लौटती है तो अपने परिजनों की जान जोखिम में डालती है। कितनी ही ऐसी भी है जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट में आना-जाना करती है। और दूसरे राज्यों से आई कई नर्से दिल्ली में अकेले कमरे किराए पर लेकर रहती है। तो ये नर्से सुबह से शाम ही नहीं बल्कि पूरे वक्त कोरोना के रिस्क में रहती है। ऐसे में इन्हें हार्डशिप एलावेंस तो दूर की बात सैलरी भी पूरी नहीं मिल रही।
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तो अगर नर्से मरीजों की अनदेखी कर रही हैं तो कुछ बुरा नहीं है क्योंकि उनकी भी लगातार चार महीनों से अनदेखी हो रही है। इसका हल यही है कि सबसे पहले उन्हें शारीरिक और आर्थिक सुरक्षा दी जाए। और अगर प्राइवेट हेल्थ सेक्टर को ऐसा करने में कहीं कोई दिक्कत आ रही है तो सरकार को फिर बीच में आकर किसी स्तर पर समझौता करना चाहिए। और यही इस महामारी से चौतरफा निपटने का हल भी है।
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